बगलामुखी दस महाविद्याओं में से आठवीं देवी हैं। उनका नाम दो भिन्न-भिन्न शब्दों बगला एवं मुखी का संयोजन है। बगला, संस्कृत मूल के शब्द वल्गा का अपभ्रंश है। वल्गा का शाब्दिक अर्थ अंकुश अथवा लगाम होता है।
अंकुश का प्रयोग अश्व को नियन्त्रित करने हेतु किया जाता है। अतः बगलामुखी का अर्थ है, वह देवी जो शत्रुओं को नियन्त्रित करने एवं स्तम्भित करने की शक्ति रखती हैं। अपनी स्तम्भन एवं वशीकरण शक्तियों के कारण इन्हें स्तम्भन की देवी के रूप में जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कालान्तर में पृथ्वी पर एक विशाल प्रलयकारी चक्रवात आया, जिसके कारण सम्पूर्ण सृष्टि पर विनाश का संकट छा गया। इस संकट के निवारण हेतु समस्त देवता सौराष्ट्र प्रान्त में एकत्रित हुये तथा देवी के समक्ष प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी बगलामुखी हरिद्रा सरोवर से प्रकट हुयीं एवं भीषण चक्रवात को शान्त किया।
देवी बगलामुखी स्वर्ण वर्ण वाली हैं। देवी पीले कमल पुष्पों से भरे अमृत सागर के मध्य एक स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। एक अर्धचन्द्राकार चन्द्रमा उनके मस्तक पर सुशोभित रहता है। उन्हें पीले रँग की पोशाक धारण किये चित्रित किया गया है। देवी की दो भुजायें हैं। माता बगलामुखी को अपने दाहिने हाथ में गदा धारण किये तथा बायें हाथ से एक दानव की जीभ पकड़कर उसे मारते हुये दर्शाया जाता है। देवी की यह छवि उनके स्तम्भन स्वरूप को प्रदर्शित करती है। स्तम्भन अर्थात शत्रु को शान्तिपूर्वक स्तब्ध एवं परास्त करने की शक्ति। स्तम्भन शक्ति उन दिव्य वरदानों में से एक है, जिसे प्राप्त करने हेतु भक्तगण देवी बगलामुखी की पूजा-आराधना करते हैं।
बगलामुखी साधना शत्रु को स्तम्भित एवं परास्त करने हेतु की जाती है। न्यायिक विवादों में विजय एवं समस्त प्रकार की प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त करने हेतु भी देवी की पूजा-आराधना की जाती है।
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नमः॥
अन्य बगलामुखी मन्त्रों की सूचि