हम दीवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा विधि को विस्तृत रूप से उपलब्ध करा रहे हैं। दीवाली पूजा के लिए लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिये। यह पूजा विधि श्री लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा या मूर्ति के लिए उपलब्ध कराई गई है। इस पूजा विधि में लक्ष्मीजी की पूजा करने के लिए सोलह चरण शामिल है जिसे षोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है।
भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें।
मन्त्र का अर्थ - भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।
श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।
मन्त्र का अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥ मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ ॥
आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
मन्त्र का अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ ॥
पुष्पांजलि-रूप आसन प्रदान करने के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुये हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें।
मन्त्र का अर्थ - हे देवी, लक्ष्मि! आपका स्वागत है।
स्वागत कर निम्न-लिखित मन्त्र से पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - सब प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मि! आपको नमस्कार है।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार ॥
पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - हे श्री लक्ष्मि! आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मि! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिए यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अर्घ्य समर्पित है ॥
अर्घ्य के बाद निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान कराएँ।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के स्नानं के लिये जल समर्पित है ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पञ्चामृत स्नान से स्नान कराएँ।
अब निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएँ।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
श्री लक्ष्मी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें।
मधुपर्क के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर आभूषण चढ़ायें।
आभूषण के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर श्री लक्ष्मी को लाल चन्दन चढ़ायें।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ायें।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम चढ़ायें।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अबीरगुलाल चढ़ायें।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अक्षत समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
हिन्दी में अर्थ - हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
हिन्दी में अर्थ - अर्थात्-हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए। बाएँ हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र काउच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से श्री लक्ष्मी की मूर्ति के पास छोड़ें।
अङ्ग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें।
अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अँधेरे को दूर करने वाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥ यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ - प्राण के लिये, अपान के लिये, समान के लिये, उदान के लिये और व्यान के लिये स्वीकार हो ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - असीम पुण्य प्रदान करनेवाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ ॥
अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥ भगवती श्री लक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ ॥
अब वन्दना करे और निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
मन्त्र का अर्थ - हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अङ्गों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें।
मन्त्र का अर्थ - हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
॥ इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार ॥
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
मन्त्र का अर्थ - हन मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन समर्पित है ॥