वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
ऑनलाइन कुण्डली मिलान अष्टकूट पद्धति पर आधारित है। अष्टकूट कुण्डली मिलान में वर और कन्या के आठ विभिन्न व्यक्तित्व पहलुओं की तुलना की जाती है और मिलान अनुकूलता के आधार पर कुछ अंक निर्धारित किये जाते हैं। अन्तिम परिणाम सभी व्यक्तित्व पहलुओं के अंक-योग पर निर्भर करता है।
कुण्डली मिलान की अष्टकूट पद्धति में, गुणों की अधिकतम संख्या ३६ है। वर और कन्या के बीच गुण अगर ३१ से ३६ के मध्य में हो तो उनका मिलाप अति उत्तम होता है। गुण अगर २१ से ३० के मध्य में हो तो वर और कन्या का मिलाप बहुत अच्छा होता है। गुण अगर १७ से २० के मध्य में हो तो वर और कन्या का मिलाप साधारण होता है और गुण अगर ० से १६ के मध्य में हो तो इसे अशुभ माना जाता है।
कुण्डली मिलान के दौरान उपरोक्त विवरण तब ही मान्य है जब भकूट दोष नहीं होता है। अगर भकूट दोष होता है तब वर-कन्या का मिलाप कभी उत्तम नहीं होता है, २६ से २९ के मध्य में गुण बहुत अच्छे होते हैं, २१ से २५ के मध्य में गुण साधारण होते हैं और ० से २० के मध्य में गुण अशुभ होते हैं।
यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि कुण्डली मिलान के दौरान नाड़ी कूट को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। अगर नाड़ी कूट अनुकूल नहीं है तब २८ गुणों का मिलान भी अशुभ माना जाता है।
टिप्पणी - मङ्गल दोष को कुज दोष के नाम से भी जाना जाता है। मङ्गल दोष को अष्टकूट कुण्डली मिलान के दौरान सम्मिलित नहीं किया जाता है। वर और कन्या के कुण्डली मिलान में अगर किसी एक की ही कुण्डली में मङ्गल दोष उपस्थित है तो अष्ट कूट मिलान नहीं किया जाना चाहिये। दूसरे शब्दों में मंगलिक और अमंगलिक जोड़े के बीच अष्ट कूट द्वारा कुण्डली मिलान नहीं किया जाना चाहिये।