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श्री बगलामुखी चालीसा - हिन्दी गीतिकाव्य और वीडियो गीत

DeepakDeepak

श्री बगलामुखी चालीसा

बगलामुखी चालीसा एक भक्ति गीत है जो बगलामुखी माता पर आधारित है।

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॥ दोहा ॥

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूँ चालीसा आज।

कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री बगला माता। आदिशक्ति सब जग की त्राता॥

बगला सम तब आनन माता। एहि ते भयउ नाम विख्याता॥

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी। अस्तुति करहिं देव नर-नारी॥

पीतवसन तन पर तव राजै। हाथहिं मुद्गर गदा विराजै॥

तीन नयन गल चम्पक माला। अमित तेज प्रकटत है भाला॥

रत्न-जटित सिंहासन सोहै। शोभा निरखि सकल जन मोहै॥

आसन पीतवर्ण महारानी। भक्तन की तुम हो वरदानी॥

पीताभूषण पीतहिं चन्दन। सुर नर नाग करत सब वन्दन॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै। वेद पुराण सन्त अस भाखै॥

अब पूजा विधि करौं प्रकाशा। जाके किये होत दुख-नाशा॥

प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै। पीतवसन देवी पहिरावै॥

कुंकुम अक्षत मोदक बेसन। अबिर गुलाल सुपारी चन्दन॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना। सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना॥

धूप दीप कर्पूर की बाती। प्रेम-सहित तब करै आरती॥

अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे। पुरवहु मातु मनोरथ मोरे॥

मातु भगति तब सब सुख खानी। करहु कृपा मोपर जनजानी॥

त्रिविध ताप सब दु:ख नशावहु। तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु॥

बार-बार मैं बिनवउँ तोहीं। अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं॥

पूजनान्त में हवन करावै। सो नर मनवांछित फल पावै॥

सर्षप होम करै जो कोई। ताके वश सचराचर होई॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै। भक्ति प्रेम से हवन करावै॥

दु:ख दरिद्र व्यापै नहिं सोई। निश्चय सुख-संपति सब होई॥

फूल अशोक हवन जो करई। ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई॥

फल सेमर का होम करीजै। निश्चय वाको रिपु सब छीजै॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई। तेहि के वश में राजा होई॥

गुग्गुल तिल सँग होम करावै। ताको सकल बन्ध कट जावै॥

बीजाक्षर का पाठ जो करहीं। बीजमन्त्र तुम्हरो उच्चरहीं॥

एक मास निशि जो कर जापा। तेहि कर मिटत सकल सन्तापा॥

घर की शुद्ध भूमि जहँ होई। साधक जाप करै तहँ सोई॥

सोइ इच्छित फल निश्चय पावै। जामे नहिं कछु संशय लावै॥

अथवा तीर नदी के जाई। साधक जाप करै मन लाई॥

दस सहस्र जप करै जो कोई। सकल काज तेहि कर सिधि होई॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा। ताकर होय सुयश विस्तारा॥

जो तव नाम जपै मन लाई। अल्पकाल महँ रिपुहिं नसाई॥

सप्तरात्रि जो जापहिं नामा। वाको पूरन हो सब कामा॥

नव दिन जाप करे जो कोई। व्याधि रहित ताकर तन होई॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी। पावै पुत्रादिक फल चारी॥

प्रातः सायं अरु मध्याना। धरे ध्यान होवै कल्याना॥

कहँ लगि महिमा कहौं तिहारी। नाम सदा शुभ मंगलकारी॥

पाठ करै जो नित्य चालीसा। तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा॥

॥ दोहा ॥

सन्तशरण को तनय हूँ, कुलपति मिश्र सुनाम।

हरिद्वार मण्डल बसूँ, धाम हरिपुर ग्राम॥

उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास।

चालीसा रचना कियौं, तव चरणन को दास॥

Kalash
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