☰
Search
Mic
हि
Android Play StoreIOS App Store
Setting
Clock

श्री संतोषी माता चालीसा - हिन्दी गीतिकाव्य और वीडियो गीत

DeepakDeepak

श्री संतोषी माता चालीसा

संतोषी चालीसा एक भक्ति गीत है जो संतोषी माता पर आधारित है।

X

॥ दोहा ॥

श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान।

सन्तोषी मां की करुँ, कीरति सकल बखान॥

॥ चौपाई ॥

जय संतोषी मां जग जननी। खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी॥

गणपति देव तुम्हारे ताता। रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता॥

माता-पिता की रहौ दुलारी। कीरति केहि विधि कहुं तुम्हारी॥

क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी। कानन कुण्डल को छवि न्यारी॥

सोहत अंग छटा छवि प्यारी। सुन्दर चीर सुनहरी धारी॥

आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला। धारण करहु गले वन माला॥

निकट है गौ अमित दुलारी। करहु मयूर आप असवारी॥

जानत सबही आप प्रभुताई। सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई॥

तुम्हरे दरश करत क्षण माई। दुख दरिद्र सब जाय नसाई॥

वेद पुराण रहे यश गाई। करहु भक्त की आप सहाई॥

ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई। लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई॥

शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी। महिमा तीनों लोक में गाजी॥

शक्ति रूप प्रगटी जन जानी। रुद्र रूप भई मात भवानी॥

दुष्टदलन हित प्रगटी काली। जगमग ज्योति प्रचंड निराली॥

चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे। शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे॥

महिमा वेद पुरनान बरनी। निज भक्तन के संकट हरनी॥

रूप शारदा हंस मोहिनी। निरंकार साकार दाहिनी॥

प्रगटाई चहुंदिश निज माया। कण कण में है तेज समाया॥

पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरु तारे। तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे॥

पालन पोषण तुमहीं करता। क्षण भंगुर में प्राण हरता॥

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं। शेष महेश सदा मन लावे॥

मनोकमना पूरण करनी। पाप काटनी भव भय तरनी॥

चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता। सो नर सुख सम्पत्ति है पाता॥

बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं। पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं॥

पति वियोगी अति व्याकुलनारी। तुम वियोग अति व्याकुलयारी॥

कन्या जो कोइ तुमको ध्यावै। अपना मन वांछित वर पावै॥

शीलवान गुणवान हो मैया। अपने जन की नाव खिवैया॥

विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं। ताहि अमित सुख संपत्ति भरहीं॥

गुड़ और चना भोग तोहि भावै। सेवा करै सो आनंद पावै॥

श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं। सो नर निश्चय भव सों तरहीं॥

उद्यापन जो करहि तुम्हारा। ताको सहज करहु निस्तारा॥

नारि सुहागिन व्रत जो करती। सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती॥

जो सुमिरत जैसी मन भावा। सो नर वैसो ही फल पावा॥

सात शुक्र जो व्रत मन धारे। ताके पूर्ण मनोरथ सारे॥

सेवा करहि भक्ति युत जोई। ताको दूर दरिद्र दुख होई॥

जो जन शरण माता तेरी आवै। ताके क्षण में काज बनावै॥

जय जय जय अम्बे कल्यानी। कृपा करौ मोरी महारानी॥

जो कोई पढ़ै मात चालीसा। तापे करहिं कृपा जगदीशा॥

नित प्रति पाठ करै इक बारा। सो नर रहै तुम्हारा प्यारा॥

नाम लेत ब्याधा सब भागे। रोग दोष कबहूँ नहीं लागे॥

॥ दोहा ॥

सन्तोषी माँ के सदा, बन्दहुँ पग निश वास।

पूर्ण मनोरथ हों सकल, मात हरौ भव त्रास॥

Kalash
कॉपीराइट नोटिस
PanditJi Logo
सभी छवियाँ और डेटा - कॉपीराइट
Ⓒ www.drikpanchang.com
प्राइवेसी पॉलिसी
द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
Android Play StoreIOS App Store
Drikpanchang Donation